"अरे वाहः! फुटबॉल खेलने वाला पार्क खुल गया।" चौंकते हुए मैं बोली। शाम का समय था और चारों जन, मैं, मेरे पति और बेटे-बहू के साथ टहलने निकले थे। पचासी दिनों से पसरा सन्नाटा फुटबॉल पर पड़ते थाप से टूट गया था।
"हाँ माँ! बच्चों और बड़ों को खेलता देखकर अच्छा लग रहा है। कल हमलोग पहाड़ों की तरफ लॉन्ग ड्राइव पर घूमने निकलेंगे।" चहकते हुए मेरी बहू ने कहा।
"हमलोग भारत वापस जा सकते हैं, आज डर कुछ कम हुआ।" मैं बोली।
"वन सेकेंड! अभी ऐसे हालात नहीं हो गए। पार्क में लगे सूचना पट्ट को गौर से देखकर धैर्य से पढ़ लो। 'केवल परिवार सदस्यों के संग खेलें।' दूसरों के नजदीक ना जायें।" मेरे पति महोदय ने कहा।
"पापा ठीक कह रहे हैं। ग्रीन जोन जिस इलाके को कहा जा है, जहाँ शराब की दुकान खोली जा रही है , जिधर पार्क खोली जा रही या वहाँ के 'अस्पतालों में हरियाली की कमी हो गई है।" मेरे बेटे ने कहा।
"कुछ देर पहले ही तुम कह रहे थे कि सन् 2009 में जो स्वाइन फ्लू फैला था उसमें ज्यादा मौत हुई थी.. , ज्यादा हाहाकार मज़ा था। लेकिन मुझे कोई ऐसा वाक्या क्यों नहीं याद आता कि ऐसी लॉकडाउन की स्थिति बनी हो...!"
"तुम बिलकुल ठीक कह रही । कोरोना से होने वाली मौत का दर भी एक-दो प्रतिशत ही है। और वो मरने वाले भी पहले से किसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित रहे हों।"
"कल की ही बात है 'हाइकु चर्चा' में डॉ. जगदीश व्योम जी ने एक गहरी बात कही,-
"आजकल वही सबसे अधिक परेशान हैं , जो अधिक संवेदनशील हैं ।"
"हाँ! तो 'अति सर्वत्र वर्जयेत्'। किसी पहले ने कहा कि 'राम आम खाता है' तो किसी अन्य तक बात पहुँची कि, -'आम राम को खाता है'।"
हर रोज तो बेख़ुदी ही ज़मीर का कातिल है।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteहाँ सारे मजदूर अपने अपने घर पहुँचने ही वाले हैं। ताला जल्दी खुलेगा। :)
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ReplyDelete"आजकल वही सबसे अधिक परेशान हैं , जो अधिक संवेदनशील हैं ।"
सबसे सटीक..अति सर्वत्र वर्जयेत्।
सादर प्रणाम दी।
आपके अनुभव यथार्थ है।
जैसा भी हो ठीक होना चाहिए ... माहोल और करोना भी ...
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