Tuesday, 5 May 2020

मिटेगा संताप काल..

01.
गोधूलि बेला–
रक्तिम लिपिस्टिक 
श्यामा होठ पे।
02.
वैश्विक युद्ध–
अनब्लॉक हो गये
वैद्य यांत्रिकी ।
03.
वैश्विक युद्ध–
वॉरियर्स पे हुए
पुष्प बौछार।


आज हाल कुछ अच्छा लगा तो बाहर टहलने निकले




चंपा फूल ने मुझे सदा सम्मोहित किया... बचपन से मुझे इससे इश्क है... हमारे घर में चंपा का पेड़ था। जब से होश संभला... 1973 तक इससे सारी बातें साझा करती रही... उसके बाद शहर बदल गया , इसका साथ छूट गया... परन्तु कहीं दिख जाता था तो कुछ देर के लिए ही सही मुझे ठमका ही लेता। 1994 के 29 अगस्त को हम पटना रहने आये। पटेल नगर पटना के जिस मकान में मैं रहती थी , वहाँ भी इस फूल का बड़ा पेड़ था.. एक बार सड़क चौड़ीकरण में उस पेड़ को जड़ समेत काट देना पड़ा.. जिस समय वह पेड़ कट रहा था , वहाँ मुझसे खड़ा नहीं रहा गया.. कटे पेड़ की टहनियाँ आग में जलती तो रौंगटे खड़े हो जाते.. मोटा तना सूख रहा था.. एक दिन यह भी जल जाएगा रोज मुझे रुंआसा करता। कुछ दिनों के बाद ,एक दिन अचानक उस सूखे तने में से पौधा निकल आया.. जिसे हम पुनः लगा सके। जलने के लिए आग में डाला जाता तो लुआठी होता...।


'बोधि वृक्ष' चौथी पीढ़ी का वृक्ष है। बिहार राज्य के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का वृक्ष। बोधि वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास-
पहली कोशिश
कहा जाता है कि बोधिवृक्ष को सम्राट अशोक की एक वैश्य रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे कटवा दिया था। यह बोधिवृक्ष को कटवाने का सबसे पहला प्रयास था।मान्यताओं के अनुसार रानी का यह प्रयास विफल साबित हुआ और बोधिवृक्ष नष्ट नहीं हुआ। कुछ ही सालों बाद बोधिवृक्ष की जड़ से एक नया वृक्ष उगकर आया, उसे दूसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है, जो तकरीबन 800 सालों तक रहा
दूसरी कोशिश
दूसरी बार इस पेड़ को बंगाल के राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को जड़ से ही उखड़ने की ठानी। कहते हैं कि जब इसकी जड़ें नहीं निकली तो राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को कटवा दिया और इसकी जड़ों में आग लगवा दी। लेकिन जड़ें पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाईं। कुछ सालों बाद इसी जड़ से तीसरी पीढ़ी का बोधिवृक्ष निकला, जो तकरीबन 1250 साल तक मौजूद रहा।
   बन्द आँखों से या खुली आँखों से कभी सपना नहीं देखा.. जब जैसी भी स्थिति रही, जिस
यूँ तो हमलोग शारीरिक स्थिति से ठीक हैं लेकिन चिंता तो बहुत है... जबसे होश संभाला कभी-कभी मुझे एक ही सपना आता था कि अथाह जल में फँसी हूँ... वैसी ही स्थिति है... बीच में खड़ी हूँ .. कई पटरियाँ हैं... किसी भी तरफ निकल भागने का रास्ता नहीं।  कैलिफोर्निया की स्थिति बहुत नाजुक रहा... मौत देखकर डॉक्टर की आत्महत्या हिला कर रख देता है...
परन्तु जीने की जिजीविषा ठूँठ में नए पल्लव देते हैं...

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छोटी बहना

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  2. परन्तु जीने की जिजीविषा ठूँठ में नए पल्लव देते हैं...
    और यही जिजीविषा नवसृजन का आधार बनेगी संताप अवश्य मिटेगा विश्वास विजयी होगा...
    बहुत सुन्दर सकारात्मकता से ओतप्रोत सृजन।

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पुनर्योग

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