सिंधु तट पे
अपलक बैठी मैं–
बुद्ध पूर्णिमा ।
अपलक बैठी मैं–
बुद्ध पूर्णिमा ।
सीमांत तक आलोचना करना अच्छा लगता है।
अपना महत्त्व सूचीबद्ध हो जाना अच्छा लगता है।
हम विष्णु के दस अवतारों में से कोई तो होते,
हम महावीर बुद्ध ईशा सुकरात में से कोई होते,
उस समय होते तो ऐसा कर लेते वैसा कर लेते।
सुझाव-सलाह देने में तो विद्यावाचस्पति हैं।
कैसे रहते , क्यों कहते , क्या वो अध्वाति हैं।
जानने में रुचि नहीं है क्या करना है क्या कर रहे हैं।
वर्त्तमान परिवेश-परवरिश में आज हो क्या रहा है...
मानो डोर बोम्मलट्टम , गोम्बेयेट्टा अन्य अंगुल्यादेश
जानो डूब-उतरा रहे अंदेशा, आशंका और पसोपेश
चाँद होना चाहिए कि होना चाहिए चकोर
चाहे जो होना शुद्ध होना बचा रहे घघराघोर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 09 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
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