–मेरी दादी माँ लगभग सौ साल की होकर गुजरी होंगी... । अपने पंद्रह-सोलह बच्चों की परवरिश के संग बहू-दामाद , नाती-नतनियों, पोते-पोतियों के चहल-पहल से गुलजार घर में सारा समय गुजर गया । एक अन्न बर्बाद हो जाए, उन्हें पसंद नहीं था...उन्हें पूजा-पंडित से कोई मतलब नहीं था.. ।
–लेकिन मेरी माँ को रामायण और कुलगुरु (घर के पुरोहित) पर अंधविश्वास था.. जब भी उन्हें कोई परेशानी नजर आती या तो कुलगुरु को बुलाकर पूजा जाप करवा लेतीं या रामायण खोल कर पढ़तीं और किसी विशेष पन्ने पर हम बच्चों से अपनी आँखों को बन्दकर किसी एक शब्द पर उँगली को रखने के लिए कहतीं और जो दोहा बनता उससे परिणाम निकाल कर अपने कामों में व्यस्त हो जातीं। वैसे उनके जैसा शक्ल पाकर भी मैं उनके जैसा मधुर आवाज और लयमय गीत गाना नहीं पा सकी।
वाह!! बहुत भावपूर्ण स्मृति चित्र!! गागर में सागर। मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय दीदी🙏🙏💐💐💐🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteनमन।
ReplyDeleteमातृदगवस पर माँ और दादी की मधुर स्मृतियां ...
ReplyDeleteवाह!!!
मातृदिवस की अनंत शुभकामनाएं।
दो जेनेरेशन दोनो जुदा जुदा। हर घर में होता है ऐसा। नमन।
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteThank you ffor writing this
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