Saturday 4 September 2021

भाग लें..!

 01. कर्मी बटोरे

तितली के पखौटा

भगौड़ा तम्बू

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02. बैले नृतन

फव्वारा में उछाले

कंधे से सिक्का

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गोरे जेलर ने देखा कि जिस युवक को कल फाँसी दी जाने वाली है उसके चेहरे पर मनोहारी मुस्कान फुट रही है.. और बड़ी आत्मीयता के साथ वह उसका अभिवादन कर रहा है..। जिस दिन से यह सुदर्शन कैदी जेल में आया जेलर के विचार-धारणाओं में क्रांतिकारी परिवर्त्तन होने लगे..। जेलर से रहा नहीं गया उसने पूछ लिया, “तुम इतने प्रसन्न क्यों हो ?” “मैं अगले जन्म की तैयारी में व्यस्त हूँ...!” युवक ने कहा जेलर को आशा थी कि युवक राष्ट्र पर अपने बलिदान के सौभाग्य पर प्रसन्न होगा पर विपरीत उत्तर पाकर कहा, “आज तो हँस रहे हो कल तुम्हारे यही मुस्कुराते होठ मत्यु की कालिमा से काले पड़ जायेंगे..,” फाँसी के तख्ते पर जब युवक को खड़ा किया गया और जल्लाद ने गले में रस्सी के फन्दे को डाला तो उसने मुस्कराकर पूछा- ‘क्या यह रस्सी थोड़ी मुलायम नहीं हो सकती थी? बड़ी खुरदरी और कड़ी है गर्दन में लगती है, भाई!’ युवक को मिले फाँसी के बाद जेलर ने चेहरा देखा ... युवक के चेहरे पर वही अमर मुस्कान बिखरी हुई थी..। मत्यु की कालिमा का कोई चिह्न वीर के शरीर पर नहीं था...। फाँसी के बाद शहीद का शव लेने आये बड़े भाई की रुलाई नहीं थम रही थी ...। गोरे जेलर ने उनकी पीठ को थपथपाते हुए कहा, आप रोते क्यों हैं जिस देश में ऐसे वीर पैदा होते हैं वह देश धन्य है मरेंगे तो सभी .., अमर होकर कौन आया है पर आपके भाई जैसे भाग्यवान कितने होते हैं ...?” सबने विस्मय से देखा गोरा अधिकारी स्वयं रो रहा था जैसे उसका अपना भाई दिवंगत हो गया हो ...। बड़े भाई ने शहीद के मुख पर से कम्बल हटाया तो देखा कि उनके शहीद भाई उन रोने वालों पर हँस रहे थे...। तालियों के शोर के बीच मंच से माइक पर नाट्य प्रस्तुति के संचालक बता रहे थे, "हम सभी अभी देख रहे थे वीर क्रांतिकारी शहीद कन्हाई दत्त की कथा पर नाट्य प्रस्तुति...। मैं बेहद शर्मिंदा हूँ कि मुझे वीर क्रांतिकारी शहीद कन्हाई दत्त के बारे में पहले से पता नहीं था ...। उनके रूप का अभिनय करने वाले छात्र ने ही हमें बताया और विदेशों में निवास करने वालों के संग पूरे देश में स्वतन्त्रता दिवस का अमृतोत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाने के क्रम में नाट्य प्रस्तुति देने का प्रस्ताव रखा।” दर्शक दीर्घा में उपस्थित अभिनय करने वाले के माता-पिता को अपने कानों से सुनी और आँखों देखी बात पर विश्वास करने में असमर्थता हो रही थी ...। माता को निंदा रस में बड़ा मजा आता था जिसके कारण कुछ महीनों पहले तक पुत्र के चुगलखोरी की आदत के कारण रिश्तेदारों के सामने शर्मिंदा होना पड़ रहा था वो आदत छूट रही थी..."अजी! हमारे बेटे ने कब दिशा बदल ली और सही के रेस में शामिल हो गया यह हमें पता भी नहीं चल पाया..!" माता ने पिता से कहा। "मैं तुम्हें सदा कहता था.. हमारे बच्चों का नजरिया बिगड़ने लगेगा वो सच को अनदेखा करना सीख जाएंगे.. । चुगलखोरी उसको बेसिर पैर की बातें बनाना सिखा देगी...। यह बहुत ही जोखिम भरा स्वभाव है जो बच्चे में तब ही विकसित होता है जब माता या पिता उसमें रूचि लेते हैं, क्योंकि उनके द्वारा बताई जानेवाली ख़बरों का अंदाज बहुत ही रोचक होता है। भले ही आधार ख़ुद बच्चे को भी मालूम नहीं होता..। ऐसी बातों को अहमियत न दो..। वरना हमारे बच्चों के सोचने का तरीका बेढंगा होता जाएगा और उनका भविष्य अंधकारमय होता चला जायेगा। बालमन बहुत ही उत्सुक हुआ करता है। अक्सर बच्चों की आदत होती ही है कि वे अपने तथा औरों के घर की बातें आते-जाते कान लगाकर सुनने की कोशिश करते हैं। ऐसे में हमें प्रयास करना चाहिए कि हम जब भी कोई ऐसी बात कर रहे हों तो सामान्य बनकर करें ताकि बच्चों में कान लगाने वाली आदत विकसित न हो सके। जब माता का ही अपनी भावनाओं पर कोई काबू नहीं हो और हमेशा आक्रोश में आकर बगैर कुछ सोचे समझे अडो़स -पड़ोस, नाते रिश्तेदारों की बातें बच्चों के सामने बेहिचक कर देती हो...। माता की बातें सुनकर उसके बच्चों के मन में भी संबंधित व्यक्ति के लिए बहुत ही गलत भावना पैदा होने लगती है और सामाजिक- पारिवारिक उत्सवों में बच्चे उस रिश्तेदार की बहुत सारी चुगली खुलेआम कर देते हैं.. माता पिता और वहाँ उपस्थित बाकी सब भी हक्के -बक्के से रह जाते हैं कि बच्चों के मुख से ऐसी बातें आखिर निकलीं भी तो निकली कैसे .. जो तुम्हारे कारण हमारे कन्हैया में आदत बनती रही..।" एक बार फिर पिता अपनी बात रखने का प्रयास किया। "कुछ दिनों पहले तक जो विद्यार्थी पूरे विद्यालय के लिए सिरदर्द बना हुआ था आज अपने कक्षा का सिरमौर हो गया है। संयोग देखिए इसका नाम भी कन्हैया है..," "हमें क्रांतिकारी कन्हाई लाल दत्त के बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध करायी जाए.., पत्रकार दीर्घा से स्वर गूँजा। "यह अकाट्य सत्य है कि सर्वप्रथम अंग्रेजों ने बंगाल में ही अपने चरण रखे। उसी भूमि पर शक्ति अर्जित कर सारे भारतवर्ष पर शासन चलाया, उसे सुदृढ़ किया अर्थात् बंगाल से ही उनके स्वर्णिम स्वप्न साकार हुए।बंगालियों ने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शिक्षा, वेश-भूषा, रहन-सहन और उनकी संस्कृति की नकल करते हुए स्वयं में परिवर्तन किये। अंग्रेजों के सहयोगी, वफादार और नौकरियों में भद्र बंगाली पुरुष ही अधिक हुए। इसी प्रकार जब अंग्रेजी राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की इच्छा जाग्रत हुई तो यह भी सत्य है कि बंगाल के लोगों ने ही बगावत का बिगुल बजाया, गोरी सरकार की जड़ों को समूल नष्ट करने के लिए सर्वप्रथम बंगालिगों ने ही हथियार उठाकर चलायी। सन् 1888 के 30 अगस्त कन्हाई लाल दत्त का जन्म कृष्णाष्टमी की काली अधेरी रात में अपने मामा के घर चन्दनंनगर में हुआ था, कदाचित् इसी से उनका नाम कन्हाई पड़ा हो। यद्यपि उनका आरम्भिक नाम सर्वतोष था। चन्दन नगर तब फ्रांसीसी उपनिवेश था। वास्तव में तो उनका पैत्रिक घर बंगाल के ही श्रीरामपुर में था। कन्हाई जब चार वर्ष के थे तब उनके पिता उनको लेकर बम्बई चले गये थे। पाँच वर्ष बम्बई में रहने के बाद नौ वर्ष की आयु में वह वापस चन्दन नगर आ गये थे और वही उनकी प्रारम्भिक से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा हुई। चन्दन नगर के डुप्ले कालेज से उन्होंने स्नातक की परीक्षा दी थी। उसी कालेज के एक प्राध्यापक चारु चन्द्र राय से गहनता के कारण कन्हाई को क्रान्ति पथ का परिचय प्राप्त हुआ था। चन्दन नगर में सर्वप्रथम क्रान्ति की योजना बनाने वाले थे - संध्या के सम्पादक ब्रम्हबाधव उपाध्याय। कन्हाई उनके सम्पर्क में भी अपने प्राध्यापक के माध्यम से ही आये थे। स्नातक की परीक्षा देने के उपरांत कन्हाई कलकत्ता आ गये और युगांतर कार्यालय में कार्य करने लगे। कलकत्ता की अनुशीलन समिति से जब उनका सम्पर्क हो गया तो न केवल वह उसके सदस्य बने अपितु उन्होंने अपने घर ही उसकी एक शाखा भी स्थापित की तथा बाद में अपने क्षेत्र में पाँच अन्य शाखाओं की भी स्थापना की थी। इन शाखाओं में व्यायाम तथा लाठी आदि चलाने की शिक्षा दी जाती थी। बाहर से देखकर उन्हें कोई भी विप्लवी समिति की शाखा नहीं समझ सकता था। स्वयं कन्हाई ने विप्लवी बनने की दीक्षा अमावस्या की रात्री में एक वटवृक्ष के तले ली थी। खुदीराम बोस द्वारा किये गये मुजफ्फरपुर बम काण्ड के उपरान्त अंग्रेजी राज्य की रातों की नीद हराम हो गयी थी। सारा अंग्रेजी शासन चौकन्ना हो गया था। चारो ओर संदिग्ध लोगो की खोज आरम्भ कर दी गयी थी। खूब दौड़-धूप के बाद पुलिस को पता चला कि इन क्रान्तिकारियो का अड्डा मानिकतल्ला के एक बगीचे में है। यह बगीचा अरविन्द घोष के भाई सिविल सर्जन डाक्टर वारीन्द्र घोष का था। गुप्तचर विभाग वह से क्रान्तिकारियो की गतिविधि पर दृष्टि रखने लगे। दुर्भाग्य से क्रान्तिकारी गुप्तचर विभाग की इस कारस्तानी से सर्वथा अनभिज्ञ रहे। इसका परिणाम क्रान्तिकारियों के लिए भारी संकटकारी साबित हुआ। गुप्तचर विभाग को इससे सफलता मिली और उसने देश के सर्वप्रथम बम षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दिया। इसमें बगीचे के मालिक वारींद्र घोष उनके भाई अरविन्द घोष , नलिनी कन्हाई लाल दत्त समेत लगभग 35 देशभक्त लोगो को बन्दी बनाने में पुलिस सफल हो गयी। इन सब बन्दियो को अलीपुर कारागार में रखा गया था और वही पर इन क्रान्तिकारियो पर अभियोग चलाया गया। इसी कारण इस अभियोग का नाम अलीपुर षड्यंत्र रखा गया था। कन्हाई लाल दत्त के साथ-साथ उसके प्रेरक प्रोफ़ेसर चारु चन्द्र राय भी बन्दी बनाये गये थे। सब पर अभियोग चला किन्तु चारू चन्द्र राय को फ्रांसीसी सरकार की बस्ती का नागरिक होने के कारण रिहा कर दिया गया। अलीपुर अभियोग में भी नरेन्द्र गोस्वामी नामक का एक व्यक्ति भी बन्दी बनाया गया था जिसने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया। उसके इस देशद्रोह से क्रान्तिकारियो के रहे-सहे प्रयत्नों पर पर पानी फिर जाने की आशंका होने लगी। यद्यपि नरेन्द्र के इस कुकृत्य की देशभक्त समुदाय द्वारा चारो ओर भर्त्सना होती रही किन्तु इससे अभियोग में तो किसी प्रकार की सहायता मिलने की संभावना थी ही नहीं। यहाँ तक की अभियोग के दौरान ही एक दिन भरी अदालत में किसी अभियुक्त ने उसको लात तक मार दी थी। उसका परिणाम यह हुआ कि एक तो वह इन बन्दियो के सामने आने से सदा बचता रहा और दूसरे सरकार ने भी उसके लिए सुरक्षा की व्यवस्था कर दी। उसको दो सरकारी अंगरक्षक दिए गये। अब जेल में ही कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र बसु ने इस देशद्रोही को सबक सिखाने की एक अदभुत योजना बना डाली। उन्होंने निश्चय किया कि नरेंद्र अपना ब्यान पूरा करे उससे पूर्व ही उसको इस संसार से प्रयाण कर लेना चाहिए। कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र की बुद्धि निरंतर कार्य कर रही थी। उन्होंने सबसे पहले जेल के वार्डन से घनिष्टता बढाई उन्हें बहुत हद तक प्रभावित कर लिया। उसके फलस्वरूप जेल के भीतर लाये जाने वाले कटहल- मछली के भीतर रखी दो पिस्तौल को प्राप्त करने में वो सफल हो गये। उसमें किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं हुई। वे पिस्तौल किन वाडरो द्वारा आयोजित किये गये और किसने बाहर से भेजे थी , इस तथ्य को बाह्य जगत कभी नहीं जान पाया। सितम्बर माह की तिथि निकट आ गयी जिस तिथि को नरेन्द्र को अपना वक्तव्य देना निर्धारित किया गया था। नरेन्द्र नियमित रूप से प्रतिदिन सत्येन्द्र और कन्हाई लाल के पास मिलने के लिए आता था। 31 अगस्त 1908 के दिन भी वह अपने समय पर उनके पास आया। तभी सत्येन्द्र ने अपने सिरहाने रखी पिस्तौल से नरेन्द्र पर वार किया गोली उसके पैर में लगी किन्तु वह उससे गिरा नही। सत्येन्द्र ने तभी दूसरी गोली चलाई तब तक नरेन्द्र भागने लगा था। सत्येन्द्र और कन्हाई दोनों ने उसके निकट पहुँचकर उसे गोलियों से छलनी कर दिया। कन्हाई को 10 नवम्बर 1908 को फांसी देने का दिन तय किया गया। क्रांतिकारी कन्हाई की कथा पर नाट्यप्रस्तुति की तैयारी करते समय इस चुगलखोर कन्हैया की आदतें परिवर्त्तनशील हो सकीं। अपनी अक्षम्य गलतियों के लिए आप सभी से क्षमा याचना करता हूँ।"

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 04 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

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  2. मृत्यु की पीड़ा जो सह कर मुस्करा सके, उससे बड़ा जीवनमुक्त कौन होगा भला?

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  3. शहीदों के गरिमामय इतिहास का पुनर्पाठ एक अलग ही उर्जा से भर देता है । प्रभावी प्रस्तुति ।

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  4. गहन भाव और शब्दों में पिरोई गई प्रस्तुति।

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