Wednesday, 20 May 2020
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कंकड़ की फिरकी
मुखबिरों को टाँके लगते हैं {स्निचेस गेट स्टिचेस} “कचरा का मीनार सज गया।” “सभी के घरों से इतना-इतना निकलता है, इसलिए तो सागर भरता जा रहा है!...
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अन्तर्कथा “ख़ुद से ख़ुद को पुनः क़ैद कर लेना कैसा लग रहा है?” “माँ! क्या आप भी जले पर नमक छिड़कने आई हैं?” “तो और क्या करूँ? दोषी होते हुए भ...
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“हाइकु की तरह अनुभव के एक क्षण को वर्तमान काल में दर्शाया गया चित्र लघुकथा है।” यों तो किसी भी विधा को ठीक - ठीक परिभाषित करना ...




अरे वाह दी क्रियेटिविटी👌
ReplyDeleteअफसोस हो रहा कि ब्यूटीशियन का कोर्स कर लिए होते
Deleteचिड़िया चुग गई खेत
सदा स्वस्थ्य रहो
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 20 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअक्षय शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Delete
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3708 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
अक्षय शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteसमय की बहती नदी
ReplyDeleteजैसे खड़ी हो गयी
ठिठक कर अचानक
बहुत खूब।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteपढ़े-- लौट रहें हैं अपने गांव
बस यही काम बचा था हम माँओं के नाम...वो भी कर लिया कल मैंने भी किया जैसे -तैसे....।पर आपका तरीका कमाल है...
ReplyDeleteवाह !आदरणीय दीदी.
ReplyDeleteसादर