Thursday 28 October 2021

'चालाकी'

 


किसी भी कार्यक्रम में समय के पहले पहुँचने की आदत होने से ज्यों ही देर होने लगती है हड़बड़ाहट हो जाती है। जब ओला की गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी तब ध्यान आया कि खुदरा पैसा बैग में नहीं है। केवल पाँच सौ वाले रुपये हैं..।

"क्या आपके पास पाँच सौ का खुल्ला पैसा है?" चालक से मैंने पूछा।

"नहीं मैडम जी। आज सुबह से जितनी सवारी बैठी सबने पाँच सौ का ही नोट दिया और खुल्ला खत्म हो गया।" चालक ने कहा।

"ओह्ह! अब कैसे काम चलेगा?" मैंने व्याकुलता में कहा।

"किसी दूकान में खुल्ला करा लेते हैं।" चालक ने कहा। सड़क के किनारे गन्ने का जूस, गोलगप्पे, चाट-मोमोज बेचने वाले चार-पाँच रेहड़ी वालों से पाँच सौ का खुल्ला पूछने पर इंकार मिला।

आखिरकार मैं ने भाई मो नसीम अख़्तर जी को फोन किया कि "मुझे पाँच सौ का खुल्ला चाहिए। उसमें भी साठ रुपया जरूर हो। वैसे मुझे अट्ठावन ही देना है।"

"ठीक है! आप आइये, हो जाएगा। मेरे पास खुल्ला है।"

"शुक्रिया भाई।"

आयोजन स्थल के थोड़ा पहले चौराहा पड़ा। जहाँ पानी वाला नारियल का ठेला लगा था। गाड़ी रोककर चालक उतरा साठ रुपया का नारियल पानी पी लिया। जब हम आयोजन स्थल पर पहुँचे तो वह मुझसे नारियल वाला पैसा मांगने लगा।

"गरीब हूँ! मैं नारियल का पैसा कहाँ से दूँगा?"

"तुम गरीब हो तो अपने बच्चे के लिए के कॉपी-कलम खरीद लेेते । मैं तुम्हें पूरा पाँच सौ दे देती।


10 comments:

  1. ऐसे लोग जहाँ चालाक बनना हो वहां बुद्धू बने रहेंगे जीवन भर

    बहुत सही

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२९-१०-२०२१) को
    'चाँद और इश्क़'(चर्चा अंक-४२३१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. बढ़िया संस्मरण।

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  5. ऐसे लोग चालाकी कर जरूरतमंदों के प्रति विश्वास को ठेस पहुंचाते हैं। सार्थक लघुकथा दीदी, प्रणाम और आभार 🙏🙏

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  6. सही बात है...गरीब और ईमानदार लोग अपने नहीं अपनों के लिए जुगाड़ लगाते हैं...चालाक लोग ही ऐसे स्वार्थी होते है
    सार्थक लघुकथा।

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  7. स्वादिष्ट था
    नारियल का जल
    सादर नमन

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