Monday, 17 February 2014

हाइगा


नदी हो या हो नारी
दोनों की बस यही कहानी

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जीव सींचती 
स्थितप्रज्ञ स्त्री धारा 
अंक भींचती ।

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कंकड़ की फिरकी

 मुखबिरों को टाँके लगते हैं {स्निचेस गेट स्टिचेस} “कचरा का मीनार सज गया।” “सभी के घरों से इतना-इतना निकलता है, इसलिए तो सागर भरता जा रहा है!...