[07/02, 8:03 am] विभा रानी श्रीवास्तव दंतमुक्ता : सबके लिए
[07/02, 8:26 am] : विभा दी गुलाब के काँटों से डरती हूँ...।
[07/02, 8:27 am] विभा रानी श्रीवास्तव दंतमुक्ता : 🤔आप और डर😜🍫
[07/02, 8:28 am] : गोली से नहीं चुभन से डरती हूँ...
शब्दों में के कांटों का क्या किया जाए
जिन्हें शब्दों के कांटों की आदत हो जाती है
उन्हें गुलाब के कांटों के चुभन अच्छे लगने लगते हैं...
[07/02, 9:23 am] : बहुत खूब कही आपने
[07/02, 5:33 pm] : बहुत प्यारी बात
[07/02, 9:23 am] : बहुत खूब कही आपने
[07/02, 5:33 pm] : बहुत प्यारी बात
जी दी ऐसे रंग मजं अक्षर पढ़ने में नहीं आ रहा।
ReplyDeleteकृपया ठीक कर दीजिये न ताकि पाठकों को सहूलियत हो।
ओह्ह गलती हो गई रंगों के साथ खेलना उचित नहीं हो सका
Deleteसस्नेहाशीष संग शुक्रिया छूटकी
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
09/02/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
हार्दिक आभार आपका
Delete"जिन्हें शब्दों के कांटों की आदत हो जाती है
ReplyDeleteउन्हें गुलाब के कांटों के चुभन अच्छे लगने लगते हैं..."