कोई रात ऐसी नहीं गुजरती थी , जिस रात उसे स्याह अनुभव ना होता हो । स्याह अनुभव शायद होता नहीं भी हो । क्यों कि विक्षिप्तावस्था में कैसी अनुभूति ।
"एक कट्ठा जमीन मेरे नाम से कर दीजियेगा तो मैं आपकी बेटी को अपने साथ रखने के तैयार हूँ ; वरना मैं चला , आप अपनी बेटी को अपने पास रखिये ।
उसके पति की कही बातों पर नीरा के पिता कोई जबाब देते ; उसके पहले उसकी भाभी चिल्ला पड़ी :- शादी के इतने सालों के बाद धमकी देने से हम डरने वाले नहीं हैं । आपको नीरा को ले भी जाना होगा और हम जमीन देने वाले भी नहीं , आप ही एक दामाद नहीं घर में | अभी एक और मेरी ननद की शादी करनी बाकी है । कल मेरी भी बेटी सयानी होगी । जमीन नहीं दी जायेगी तो नहीं दी जायेगी ।
जमीन नहीं दिए जाने के कारण मायके में ही रहना पड़ा नीरा को ।
जब तक नीरा के माँ बाप जिन्दा रहें , नीरा का पेट भरता रहा । माँ बाप के मृत्यु के बाद उसे उसी शहर के मन्दिर में आश्रय लेना पड़ा । समृद्ध घर के मालिक के पास सैकड़ो एकड़ जमीन थी ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 28 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
Delete