शिकायतें तब तक ही रही अधूरे सपनों की,
जब तक तलाशती रही बैसाखी अपनों की।
"ये सोनू की परिचित हैं, अतः हमसे मिलने आई हैं..!"
सोनू ("बोलो जिंदगी" का संस्थापक श्री राकेश सिंह 'सोनू') की बुआ ने आगंतुक का परिचय अपने पति से करवाते हुए अपने निवास स्थान का अवलोकन कराया।
"आपलोग कब आये अमेरिका, बच्चों के संग या उनके पूरी तरह व्यवस्थित हो जाने के बाद ?"आगंतुक की वाणी में सवाल से ज्यादा उत्सुकता थी मानों वह अपने आने का समर्थन चाह रही हो।
"हम अपने बेटे के चिकित्सा के सिलसिले में पहली बार आये, लगभग चालीस-बयालिस साल पहले। तब वह बहुत ही छोटा था। उसके दोनों कानों का शल्य-चिकित्सा करवानी थी। आपका भी अब यहीं रहना होगा? अमेरिका के अनेक हिस्सों में भारतीय ज्यादा बस गए हैं।"
"हाँ! हमें जानकारी मिल रही है। मुझे लगता था कि आज की पीढ़ी के युवा विदेशी प्यारे पिंजरे फँसे हैं। जब तक मैं होश में हूँ स्थाई रहने का तो नहीं सोच सकती।"आगुन्तक ने दृढ़ता से कहा
"हमलोगों का भी भारत में ही ज्यादा मन लगता है, लेकिन देश की जो स्थिति है...,"
"क्या देश की स्थिति के जिम्मेदार वो नहीं जो जन्म लेते हैं उस मिट्टी में और जब कर्ज चुकाने की बारी आती है तो केवल स्व में सिमटी जिंदगी जीते हैं..!"आगुन्तक के आवाज में थर्राहट कम गुर्राहट ज्यादा था
"आपको क्या लगता है देश में गृह युद्ध होगा?"
"जब जिद कायम रहेगा कट्टरपंथी का तो मुमकिन है..!" आगुन्तक गुस्से से बोल पड़ी ।
"मेरा बड़ा पोता अगले साल महाविद्यालय में नामांकन लेगा इसके साथ रहने का मोह है।जानती ही हैं मूल से ज्यादा...!"
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 26 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आपका
Deleteसार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब!!
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