"अच्छी है या बुरी अभी नहीं समझ पा रहा हूँ, लेकिन अभी आपको बता रहा हूँ। इस बात को आप अपने तक ही रखियेगा। मैं पत्नी व बच्चियों के संग एक साल के लिए अमेरिका का सब छोड़-छाड़ कर भारत वापस जा रहा हूँ..," हिमेश के इतना कहते ही रमिया स्तब्ध रह गई।
लगभग बारह साल से पारिवारिक दोस्ती है। हिमेश की पत्नी और रमिया में तथा रमिया के पति और हिमेश में गहरी छनती है.. रमिया को दो बेटे हैं तो हिमेश को दो बेटियाँ। हिमेश नौकरी के सिलसिले में अमेरिका आया। नौकरी व्यवस्थित होने पर शादी और समयानुसार दो बच्चियाँ हुई। हिमेश बहुत सालों से अपने माता-पिता को अपने संग अमेरिका में ही रखना चाह रहा था। भारत में माता-पिता के पास अन्य बच्चे भी थे देखभाल के लिए , परन्तु वृद्ध के लिए रस्साकस्सी शुरू हो गए थे । सभी हिमेश पर बराबर दबाव बना रहे थे कि वो भारत वापस आ जाये।
"क्या बेवकूफी वाली बात कर रहे हो मेरे दोस्त। तुम्हारी बच्चियाँ भारत में समझौता क्यों करें? देखो हमने निर्णय किया है कि जब ऐसा समय आयेगा कि हमारी जरूरत हमारे माता-पिता को होगी और वे यहाँ अमेरिका में आकर नहीं रहेंगे तो तीन महीना मैं जाकर रहूँगा और तीन महीना रमिया जाकर रहेगी।" रमिया के पति ने हिमेश को राह सुझाने की कोशिश किया।
"और आगे का छ महीना?" हिमेश उलझन में था।
"तब का तब और सोचेंगे...," रमिया ने कहा।
"तब का तब क्या तुम सेवा करने योग्य रह जाओगे? पिता का धन पुत्र को नहीं मिलता,भविष्य का कुछ सोचकर यह कानून बना होगा।" हिमेश की पत्नी गहरी तन्द्रा से जगी थी।
ओह्ह..माता-पिता का बुढ़ापा कभी बोझ बन जाता है तो कभी स्वार्थपूर्ति का साधन ऐसा क्यों जाता है दी...?
ReplyDeleteमन को उद्वेलित करती लघुकथा।
आपकी लघुकथाओं मेंं समसामयिक समाजिक यथार्थ की कड़वाहट महसूस की जा सकती है दी।
संस्कार परवरिश परिवेश मनोविकार सबके आधार पर सोच-समझ विकसित होती है... किसकी बुद्धि कब किस राह पर चले कहना मुश्किल
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteझझकोरर्ने वाली विषय वस्तु, साथ में आज के पढ़े लिखों का मर्मान्तक कड़वा सच | प्रणाम और शुभकामनाएं आदरणीय दीदी | |
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