सेन हौस से ह्यूस्टन जाने के लिए सास-ससुर व बहू एयरपोर्ट पहुँच गए। उनके टिकट का नम्बर B-4 , B-5 व B-6 था। हवाई जहाज के अंदर जाते ही बहू ने सास-ससुर को कहा कि,–"आपलोग किसी भी सीट पर बैठ जाएं।"
"अरे! यह तो सीवान(बिहार) के सिनेमा हॉल सा है!" सास ने खिलखिलाकर कहा तो सभी उसे अजूबा समझकर मुस्कुराने लगे।
"जानती हो बहू जब मैं शादी के बाद पहली बार रक्सौल में फ़िल्म देखने गई तो अंदर जाने के लिए पँक्ति में सबसे आगे आदतन लगी और अंदर जाकर पता लगा कि कुर्सी पर नम्बर लिखे होते हैं और टिकट पर लिखे नम्बर वाली कुर्सी पर बैठना होता है। उस समय भी सभी ऐसे ही मुस्कुरा रहे थे। कुर्सी लूटने/छेकने का अपना आनन्द होता है। आज पुनः सुखी हूँ।"
"गंवार ही रह जाओगी सदा!" ससुर के चेहरे से आवाज तक में स्पष्ट खिन्नता दिख रहा था
"हाँ! आज सीट लूटते इन अंग्रेजों सा... जो दोनों तरफ की अगली पँक्ति छोड़कर बैठे, जिनके पास A-1 से A-60 तक के नम्बर थे।"
"अरे! यह तो सीवान(बिहार) के सिनेमा हॉल सा है!" सास ने खिलखिलाकर कहा तो सभी उसे अजूबा समझकर मुस्कुराने लगे।
"जानती हो बहू जब मैं शादी के बाद पहली बार रक्सौल में फ़िल्म देखने गई तो अंदर जाने के लिए पँक्ति में सबसे आगे आदतन लगी और अंदर जाकर पता लगा कि कुर्सी पर नम्बर लिखे होते हैं और टिकट पर लिखे नम्बर वाली कुर्सी पर बैठना होता है। उस समय भी सभी ऐसे ही मुस्कुरा रहे थे। कुर्सी लूटने/छेकने का अपना आनन्द होता है। आज पुनः सुखी हूँ।"
"गंवार ही रह जाओगी सदा!" ससुर के चेहरे से आवाज तक में स्पष्ट खिन्नता दिख रहा था
"हाँ! आज सीट लूटते इन अंग्रेजों सा... जो दोनों तरफ की अगली पँक्ति छोड़कर बैठे, जिनके पास A-1 से A-60 तक के नम्बर थे।"
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