Saturday, 29 February 2020

29-02-2020

गुरू जी पर कुंडलिया-1
(आ विभा रानी श्रीवास्तव)
=============
दिदिया हउवें गुरू जी,ई सैनिक के भाय।
घूमत रहलीं इत व उत,कविता दिहिन सिखाय।।
कविता दिहिन सिखाय,वर्ण सत्रह गो होला।
ओमें भइलीं पास,लिखीं अब दोहा रोला।
कह मणि बा उपकार,भले उड़ि जाला निंदिया।
इनसे बानी आज,गुरूजी हउवें दिदिया।।

मणि

बर्फ बौछारें–
चम्मच पे निहारें
चाशनी बूँदें। विभा रानी


इस विश्व में आज के दिन 28 कलम चले.. 29 फरवरी 2020 का लेखन प्राप्त हुआ

01. मधुरेश नारायण *मुक्तक*
02. राजेन्द्र पुरोहित *कथा*
03. सीमा रानी *कविता*
04. प्रियंका श्रीवास्तव *कथा*
05. पूनम कतरियार कथा
06. डॉ. पूनम देवा कथा
07. शाइस्ता अंजूम कविता
08. मेनका त्रिपाठी कविता
09. डॉ. निशा महाराणा कविता
10. निधि राज ठाकुर कविता
11. राहुल शिवाय मुक्तक
12. संजय कुमार 'संज' कविता
13. आदर्श सिंह निखिल मुक्तक
14. गरिमा सक्सेना
15. श्वेता सिन्हा
16. डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
17. नूतन सिन्हा
18. अंकिता कुलश्रेष्ठ
19. डॉ. विद्या चौधरी
20. टी. आनन्द विक्रम
21. विष्णु सिंह
22. हेमंत दास हिम
23.
24.
25.
26.
27.
28

[29/02, 8:24 am] विरानीश्रीवास्तवदंतमुक्ता: 13 नम्बर ~पड़~ पर आये वो भी हड़काने पे
[29/02, 8:25 am] विरानीश्रीवास्तवदंतमुक्ता: गर्व होता है..  हैं तो ऐसे बच्चे मेरे झोली में
[29/02, 7:50 am] राहुल शिवाय: एक रचना समीक्षार्थ

यूँ ही सूर्य नभ में निकलता नहीं है
यूँ ही कोई भी फूल खिलता नहीं है
किसी सिंह के सोचने से ही केवल
हिरण उसको खाने को मिलता नहीं है

-राहुल शिवाय
29.02.2020
[29/02, 7:51 am] आदर्श सिंह: अहा क्या खूब भाई
[29/02, 8:00 am] विरानीश्रीवास्तवदंतमुक्ता: आपकी लेखनी यहाँ क्यों नहीं चल पाती ?
[29/02, 8:01 am] आदर्श सिंह: माँ अभी सब कुछ बन्द है पता नहीं क्यों लिखा ही न जा रहा कुछ
[29/02, 8:03 am] विरानीश्रीवास्तवदंतमुक्ता: माँ की लाज बच गई
[29/02, 8:04 am] विरानीश्रीवास्तवदंतमुक्ता: 🤔 फौजी और बहाना है..❓
[29/02, 8:05 am] राहुल शिवाय: माँ की इच्छा थी... पालन होना ही था...
[29/02, 8:07 am] राहुल शिवाय: पटना के अन्य साथी भी जरूर लिखेंगे... अभी 29 खत्म नहीं हुआ.. मैं बंगाल में एक कार्यक्रम में व्यस्त था तो विलम्ब हो गया.. अभी घर लौट रहा
[29/02, 8:09 am] आदर्श सिंह: नेवर
[29/02, 8:09 am] आदर्श सिंह: बहाकर के लहू अपना हमेशा आचमन करना
भरी हो गर्व से छाती तिरंगे को नमन करना
यही बोला मेरी माँ ने मैं निकला जब मेरे घर से
तुम वंदे मातरम गाना सुनो जब भी भजन करना।
[29/02, 8:10 am] राहुल शिवाय: आहा! लाजवाब
[29/02, 8:11 am] विरानीश्रीवास्तवदंतमुक्ता: पता है माँ को खड़ूस क्यों हो जाना पड़ता है ...
[29/02, 8:12 am] आदर्श सिंह: 😃😃😃😃
[29/02, 8:12 am] आदर्श सिंह: सॉरी कह रहे थे हम
[29/02, 8:15 am] राहुल शिवाय: कुछ पाने को श्रम तो करना पड़ता है
धीरे-धीरे आगे बढ़ना पड़ता है
यूँ ही बच्चा सरपट दौड़ नहीं पाता
उसको पहले गिर-गिर चलना पड़ता है

राहुल शिवाय
29.02.2020
"अधूरी ख्वाहिश" लघुकथा


1 comment:

  1. उत्साहित करना कोई आपसे सीखे ,सादर प्रणाम

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...