Thursday, 10 June 2021

पर्यावरण

 


ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत करने की परंपरा होती है... इस दिन शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और वट के पेड़ की पूजा भी करती हैं. इस व्रत का महत्व करवा चौथ जैसा ही है...

आज ज्येष्ठ की अमावस्या है..  आज के दिन वट सावित्री की पूजा में बरगद को पंखे से हवा दी जाती है.. पर्यावरण रक्षा हेतु बरगद को बचाने का मुहिम माना जाना जा सकता है ज्येष्ठ में सबसे ज्यादा गर्मी होने की वजह से मुझे ऐसा लगा

बेना की हवा

बरगद को मिले–

ज्येष्ठ की अमा

या

बेना को देख

पति का मुस्कुराना–

वट सावित्री

दिल यक़ीन करना चाहता है

सावित्री सत्यवान के प्रेम को।

किसी ने कहा स्त्रियों के हिस्से ही

क्यों आया सारे तप त्याग व्रत साधना।

धुरी-नींव को जो मजबूती चाहिए

वो स्त्रीलिंग होने के आधार में है।

वैसों के समझ में कहाँ है यह मान लेना।

दिमाग पर्यावरण बचाओ का समर्थक हो रहा

पूजा के ध्येय से तोड़ी टहनी पर

चीखने का जी करता है।

10 comments:

  1. वटवृक्ष के प्रति सुंदर भावना प्रकट करता सृजन...

    दिमाग पर्यावरण बचाओ का समर्थक हो रहा

    पूजा के ध्येय से तोड़ी टहनी पर

    चीखने का जी करता है।..आपकी ये पंक्ति मेरे भी मन को झकझोर गई,ये टहनी पूजने की परंपरा पता नहीं किसने प्रारंभ कर दी ।पूरा वृक्ष नोच लेते हैं इसे बेचने वाले ।आपको मेरा नमन ।

    ReplyDelete
  2. रथयात्रा की शुभकामनाएं
    बेना की हवा
    बरगद को मिले–
    ज्येष्ठ की अमावस्या
    सादर नमन

    ReplyDelete
  3. दिमाग पर्यावरण बचाओ का समर्थक हो रहा

    पूजा के ध्येय से तोड़ी टहनी पर

    चीखने का जी करता है।
    बहुत सुन्दर रचना👏👏

    ReplyDelete
  4. वटवृक्ष के प्रति सुरक्षात्मक भावना बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
  5. पर्यावरण समस्या विकट होती जा रही है तो एक एक टहनी की कमी भी खलेगी ही...सही कहा औरतों के हिस्से ही आ सकते हैं ये रीति रिवाज व्रत उपवास क्योंकि वे ही सम्भाल सकती हैं परम्पराएं एवं संस्कार....
    बहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित सृजन लाजवाब हायकु के साथ।

    ReplyDelete
  6. सार्थक संदर्भ उठाती सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  7. सच्ची , पेड़ों को पूजने की प्रक्रिया में यदि टहनियाँ तोड़ पूजा की जाएगी तो मन चीखने का ही करेगा ।
    सार्थक सृजन

    ReplyDelete
  8. पूजा के ध्येय से तोड़ी टहनी पर

    चीखने का जी करता है।
    मेरा भी दी,ये गलत परम्पराएं टूटनी ही चाहिए। करनी है तो पेड़ की पूजा करो जो सदियों तक जीवन देगा तुम्हे भी और तुम्हारे पति और बच्चों को भी।
    जागरूकता जगाता सुंदर सृजन दी,सादर नमन आपको

    ReplyDelete
  9. परंपराओं के माध्यम से वृक्षों को जीवित रखने का प्रयास अनुठा ही होता है।

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...