भोजन के मेज, भोजन पकाने का स्लैब
गुड़-चीनी आटे-चावल के डिब्बे पर लगे
चींटियों से त्रस्त होकर
लक्ष्मण-रेखा खिंचती ,सोचती रही,
सताते हुए वक्त से शिकायत कर लूँ !
थमना होगा थमने योग्य समय
कहाँ से चुराकर लाऊँ।
संयुक्त परिवार में कई जोड़ी हाथ होते थे
कई जोड़ी कान भी होते थे
विरोध से उपजे आग को
एक अकेला मुँह ही ज्वालामुखी बनाने में
महारथ हासिल किए रहता था।
दाँत-जीभ को सहारा बनाये मुँह
मुँह का खाता रहता,
लम्बी-लम्बी हांकता रहता..।
अन्न फल से संतुष्ट कहती
मिट्टी भी हितकारी हो।
सपरिवार हम सबके लिए
हर पल मंगलकारी हो।
जय मां हाटेशवरी.......
ReplyDeleteआपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 15/06/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (15 -6-21) को "ख़ुद में ख़ुद को तलाशने की प्यास है"(चर्चा अंक 4096) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आमीन।
ReplyDeleteसुंदर सृजन ।
ReplyDeleteसादर
सुंदर सृजन
ReplyDeleteगहन रचना।
ReplyDeleteअद्भुत !
ReplyDeleteरोज की पुकार।
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteथमना होगा थमने योग्य समय
ReplyDeleteकहाँ से चुराकर लाऊँ।
संयुक्त परिवार में कई जोड़ी हाथ होते थे
कई जोड़ी कान भी होते थे
विरोध से उपजे आग को
एक अकेला मुँह ही ज्वालामुखी बनाने में
महारथ हासिल किए रहता था।
सही बात है संयुक्त परिवार में जितनी खुशियाँ उतनी ही सावधानियां भी....
बहुत ही सुन्दर... आखिर सोच का सृजन जो है।