क्या शाम के नाश्ते में मैगी/पास्ता खा लेंगे?
भुजा खिलाओ न ! विदेश चलन मुझे नहीं पचता।
थोड़ा आप भी समझने की कोशिश करें,
अपार्टमेंट निवास मुझे नहीं जँचता।
तालाब पाटकर शजर काटकर
अजायबघर बनाने से मन नहीं भरा।
स्मार्टसिटी बनाने के जुनून में
ओवरब्रिज का जाल बिछा देने का चस्का चढ़ा।
अटल पथ पर बने फुट ब्रिज पर सेल्फी ले आऊँ
आज दिनभर यही सोचती रही,
कैद कमरे में नाखून नोचती रही।
कंक्रीट के जंगल में बिना आँगन,
कुछ फ्लोर में बिना छत का काटती सज़ा,
सूना गलियारा जिन्दगी गुजरे बेमज़ा।
पर्यावरण दिवस की देनी है बधाई
पर किसे और कैसे यह बात समझ में नहीं आयी
ऊपर वाले के समझ में जैसे ही आय़ी आदमी पैजामे से बाहर हो चला है भेज दिया वायरस। फ़िर भी पर्यावेरण दिवस की बधाई।
ReplyDeleteहर जगह यही हाल है । अब वृक्ष नहीं कंक्रीट के जंगल हैं ।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6 -6-21) को "...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते"(चर्चा अंक- 4088) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जरा भी नहीं सोचते पेड़ काटने में....जैसे पेड़ों ने ही रोका है स्मार्ट सिटी को....।
ReplyDeleteबहुत खूब।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहन लेखन...। खूब बधाई आपको।
ReplyDeleteपर्यावरण दिवस सिर्फ़ नारों और साहित्यिक पन्नों तक सीमित हो मानो।
ReplyDeleteआक्रोशित अभिव्यक्ति दी।
सादर।
सही प्रश्न, कौन है पर्यावरण की बधाई का पात्र???? सच में आक्रोश होना चाहिए इन सब पर। प्रणाम और आभार दीदी 🙏🙏🌷💐💐🌷
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीया
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ReplyDeleteबेहतरीन रचना