कवि को कल्पना के पहले,
गृहणियों को थकान के बाद,
सृजक को बीच-बीच में और
मुझे कभी नहीं चाहिए..'चाय'
आज शाम में भी चकित होता सवाल गूँजा
कैसे रह लेती हो बिना चाय की चुस्की?
कुछ दिनों में समझने लगोगे जब
सुबह की चाय मिलनी भी बन्द हो जाएगी।
चेन स्मोकर सी आदत थी
एक प्याली रख ही रहे होते थे तो
दूसरी की मांग रख देते।
रविवार को केतली चढ़ी ही रहती थी।
पैरवी लगाने वाले, तथाकथित मित्रता निभाने दिखते थे..
ओहदा पद आजीवन नहीं रहता..
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकुछ भी आजीवन नहीं रहता बहुत खूब
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