पता नहीं
पारस लोहा को सोना बनाता
कि नहीं बनाता, लेकिन
कभी किसी को
कोई ऐसा मिल जाता है
जिसके सम्पर्क में
आने से बदलाव हो जाता है
बस कोई सन्त किसी डाकू से पूछे
'मैं ठहर गया तुम कब ठहरोगे?'
नरपिशाच के काल में
वैसे सन्त और वैसे डाकू
कहाँ से ढूँढ़कर लाओगे..!
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (22 -6-21) को "योग हमारी सभ्यता, योग हमारी रीत"(चर्चा अंक- 4103) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteनर भी और पिशाच भी
ReplyDeleteसन्त है ना ।
सुंदर व सटीक
ReplyDeleteबहुत बढियां
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