"पिण्डदान"
महेन्द्र पुरोहित सुबह की चाय लेकर बरामदे में बैठने ही जा रहे थे कि लैंडलाइन टुनटुनाने लगा, चोंगा उठाकर , "हेल्लो!" कहा
"आपको खबर करनी थी कि माँ का श्राद्धकर्म करना है आप आ जाएं..।" छोटे भाई राजेन्द्र पुरोहित की पत्नी अनिता पुरोहित ने कहा।
"माँ का श्राद्धकर्म करना है! माँ का देहान्त कब हुआ?" जेठ की चौंकते हुए गुस्से में थोड़ी तेज ध्वनि गूँजी।
"माँ का देहान्त आठ दिन पहले हो गया था लेकिन राजेन्द्र की स्थिति बेहद नाजुक थी... वो तो एहसानमंद हूँ अपनी सहेली एकता की कि उसने अपने पति इन्दल जी के माध्यम से अस्पताल में ऑक्सीजन बेड की व्यवस्था करवा दी। इन्दल जी की सहायता से ही माँ का क्रियाकर्म भी हो सका।"
"मुझे नहीं लगता कि वहाँ पिता जी राजेन्द्र और उसके पुत्र के होते मेरे आने की कोई आवश्यकता है। कुछ रुपये भेजवा दूँगा खर्च करने में सहायता हो जाएगी।"
"राजेन्द्र अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं, पक्षाघात के कारण पिता जी बिछावन से उठ नहीं सकते.. , दूसरे देश में कोरंटाइन होने के कारण पुत्र आ नहीं पा रहा है..!" व्यथित अनिता पुरोहित सिसक पड़ी।
"हम नहीं आ पाएंगे.. मेरी ओर से भी इन्दल जी से अनुरोध करना वे तुम्हारी सहायता कर दें सारी व्यवस्था करने में।"
"क्या सच में मैं त्रेतायुग की सीता हूँ..!" अनिता पुरोहित विचारमग्न रही।
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