Thursday 14 June 2012

# रवि की आशिकी नीर से #



    




रवि की आशिकी नीर से होती ,

वशीभूत हो रूप बदल मेघ बन जाती  .... ,

शिखर से टकरा फिर नीर बन मिट्टी से मिलती .... !!

मिट्टी अमिट बड़ी अनमोल होती ,

मैं मिट्टी में लोट - पोट कर बड़ी होती ,

बचपन छोड़ जवानी माँगती ,

मिट्टी में घरौंदे बनाकर सच का घर बनाने के सपने सजाती .... !!

पहली बारिश की बुँदे मिट्टी का हाल-चाल जानने आती ,

मिट्टी मिलन से निकली सौंधी खुशबु इत्र को मात देती ,

सौंधी खुशबु नयी ताजगी , नया उत्साह जगा जाती ,

जलज पैदा कर जल में चाँद का अक्स गिला दिखलाती ,

थकान से उपजी असजता का एहसास मिटा जाती ,

बिखरे हुए घर को दोबारा व्यवस्थित करने का हिम्मत पैदा कर जाती ,

मीठे - मीठे सपनो की काल्पनिक दुनिया में जाने की उम्मीद दिखा जाती ,

आंधी से ऊपर उड़े धुल को मिट्टी में मिलाती हमारी स्मरण-शक्ति तेज करती ,

....... निरर्थक का कोई वजूद नहीं होता .... कहीं कोई स्थान नहीं मिलता .......

जब-जब पहली बारिश की बुँदे मिट्टी का हाल-चाल जानने आती ..... !!

14 comments:

  1. सौंधी खुशबु नयी ताजगी , नया उत्साह जगा जाती ,
    उत्साह बनाये रखें ......खूबसूरत कल्पना !
    शुभकामनाएँ!

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  2. निरर्थक कुछ होता भी नहीं

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  3. सौंधी खुशबु नयी ताजगी , नया उत्साह जगा जाती ,

    वाह,,,, बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन रचना के लिये बधाई ,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

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  4. ....... निरर्थक का कोई वजूद नहीं होता .... कहीं कोई स्थान नहीं मिलाता .......

    जब-जब पहली बारिश की बुँदे मिट्टी का हाल-चाल जानने आती ..... !!


    बहुत सही कहा आंटी !


    सादर

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  5. सोंधी खुशबू युक्त रचना

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  6. बहुत सुन्दर रचना....

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  7. वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  8. बहुत बढिया है

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  9. वारिश की उत्पत्ति से अंत तक का पूरा चक्र बड़ी गहनता से इस कविता में प्रस्तुत किया गया है. बहुत सुंदर रचना.

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  10. बेहतरीन रचना..

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