Saturday, 26 July 2014
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कंकड़ की फिरकी
मुखबिरों को टाँके लगते हैं {स्निचेस गेट स्टिचेस} “कचरा का मीनार सज गया।” “सभी के घरों से इतना-इतना निकलता है, इसलिए तो सागर भरता जा रहा है!...
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अन्तर्कथा “ख़ुद से ख़ुद को पुनः क़ैद कर लेना कैसा लग रहा है?” “माँ! क्या आप भी जले पर नमक छिड़कने आई हैं?” “तो और क्या करूँ? दोषी होते हुए भ...
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“हाइकु की तरह अनुभव के एक क्षण को वर्तमान काल में दर्शाया गया चित्र लघुकथा है।” यों तो किसी भी विधा को ठीक - ठीक परिभाषित करना ...
 


सुन्दर रचनाओं का गुच्छ
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteमन भाया बहुत.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteअच्छे दिन आयेंगे !
कर्मफल |
फेसबुक पर पह्ले ही पढने को मिल जाता है!! फिर भी दुबारा पढना और भी आनन्द प्रदान करता है!!
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही खूबसूरत ...
ReplyDeleteसुंदर बेहद सुंदर , आ. धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteस्नेहाशिष ..... शुक्रिया .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : क्रूस के अनसुलझे सवाल
खुबसूरत अभिवयक्ति..... कृपया हमारे ब्लॉग पर भी पधारें धन्यवाद !
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