Friday 1 August 2014

श्रावणी तीज


हँसी बंजर
हवा-हाथ से छूटी
बदली गिरी। 

निर्जला रहे
पी-लम्बी उम्र मांगे
पारथी पूजे।


सजे सजाये
माँ सुता संग जीये
स्वप्न अपने।

पंजाब की लोक - संस्कृति में चर्खे का विशेष स्थान रहा है | 
एक ज़माना था जब अविवाहित लड़कियाँ मिलकर चर्खा काता करती थीं | सामूहिक रूप से चर्खा कातने वाली लड़कियों की टोली को
 त्रिंजण कहा जाता था |
यह संसार भी एक त्रिंजण ही है, 
जहाँ हम सब मिलकर एक दूसरे के सहयोग से 
अपना जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं | 
हमारा मन भावों का त्रिंजण है 
जो दिन-रात भावों के रेशे काता करता है 
और हम अपने अनुभवों को शब्दों की 
माला में पिरोकर अभिव्यक्त करते हैं |==डॉ . हरदीप कौर सन्धु ...
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मैं इसे नेह के साथ ले आई हूँ ..... नेह भी तो अनुभूति का सूत काता करता है ....
भाई बड़ा हो तो पिता ,एक अभिवावक के रूप में .... छोटा भाई हो तो पुत्र के रूप में .... भाई के रूप में एक सखा भी मिलता है .....
पश्चिमी यू पी में इसे तीजन कहा जाता है -समूह में मिल -बैठकर कातना को ।

नेह त्रिंजण
भीने रिश्ते की मधु
रक्षा बंधन

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5 comments:

  1. यह संसार भी एक त्रिंजण ही है.... sahi baat kahi aapne ....sundar rachna vibha ji

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  3. बहुत खूब ! लाज़वाब भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  4. बहुत सुंदर....

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मनाजीताभ

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