Saturday 26 July 2014

बात है



मिट्टी की काया
ढूँढें संघर्ष-वर्षा 
ओक में ओज। 



मिट्टी का दीया
जग को ओज दिया
ओक  आग से। 




कल की बात है 
====
आलता लगाती सांझ तरुणी निकली
झिर्री से झाँकती तारों की टोली निकली
सूर्य सूर्यमुखी अपनी दिशा बदलते रहे 
रात रानी नशीली खिलखिलाती निकली 

====


13 comments:

  1. सुन्दर रचनाओं का गुच्छ

    ReplyDelete
  2. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  3. फेसबुक पर पह्ले ही पढने को मिल जाता है!! फिर भी दुबारा पढना और भी आनन्द प्रदान करता है!!

    ReplyDelete
  4. वाह ... बहुत ही खूबसूरत ...

    ReplyDelete
  5. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर रचना...

    ReplyDelete
  7. खुबसूरत अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  8. स्नेहाशिष ..... शुक्रिया .....

    ReplyDelete
  9. खुबसूरत अभिवयक्ति..... कृपया हमारे ब्लॉग पर भी पधारें धन्यवाद !

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

नेति नेति —अन्त नहीं है, अन्त नहीं है!

नेति नेति {न इति न इति} एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ है 'यह नहीं, यह नहीं' या 'यही नहीं, वही नहीं' या 'अन्त नहीं है, अ...