Friday 11 December 2020

'पितृ-ऋण'

लॉकडाउन–
मौत सभा में गूँजे
प्रेम के धुन।

"बाबूजी!"

"आइये बाबूजी!"

"आ जाइए न बाबा.." मंच से बच्चों के बार-बार आवाज लगाने पर बेहद झिझके व सकुचाये नारायण गोस्वामी मंच पर पहुँच गए।

   मंच पर नारायण गोस्वामी के पाँच बच्चें जिनमें चार बेटियाँ ,  स्वीकृति, संप्रीति स्मृति, स्वाति और एक बेटा साकेत उपस्थित थे। 

"मैं बड़ी बिटिया स्वीकृति महिला महाविद्यालय में प्रख्याता हूँ।"

"मैं संप्रीति चार्टर्ड एकाउंटेंड हूँ।"

"मैं स्मृति नौसेना में हूँ।"

"मैं स्वाति बायोटेक इंजीनियर हूँ।

"मैं अपने घर में सबसे छोटा तथा सबका लाड़ला साकेत आपके शहर का सेवक हूँ जिला कलेक्टर।

  आप सबके सामने और हमारे बीच हमारे बाबूजी हैं 'श्री नारायण गोस्वामी'।"

"आपलोगों के बाबूजी क्या कार्य करते थे ? यह जानने के लिए हम सभी उत्सुक हैं।" दर्शक दीर्घा के उपस्थिति में से किसी ने कहा।

"हमारे बाबूजी कब उठते थे यह हम भाई बहनों में से किसी को नहीं पता चला। पौ फटते घर-घर जाकर दूध-अखबार बाँटते थे। दिन भर राजमिस्त्री साहब के साथ, लोहा मोड़ना, गिट्टी फोड़ना, सीमेंट बालू का सही-सही मात्रा मिलाना और शाम में पार्क के सामने ठेला पर साफ-सुथरे ढ़ंग से झाल-मुढ़ी, कचरी-पकौड़े बेचते थे।"

   दर्शक दीर्घा में सात पँक्तियों में कुर्सियाँ लगी थीं.. पाँच पँक्तियों में पाँचों बच्चों के सहकर्मी, छठवीं में इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया -प्रिंट मीडिया केे पत्रकार व रिश्तेदारों के लिए स्थान सुरक्षित था तो सातवीं पँक्ति में नारायण गोस्वामी बाबूजी के मित्रगण उपस्थित थे।

पिन भी गिरता तो शोर कर देता...।

14 comments:

  1. ओहदा तो बुद्धि और मेहनत के द्वारा प्राप्त कर सकते हैं पर महत्वपूर्ण होता है संस्कार...अपने पोषणकर्ता का त्याग और बलिदान को मात्र उनका कर्तव्य न समझ वाली संतान से बेशकीमती कोई जायदाद नहीं।
    हृदयस्पर्शी लघुकथा दी।
    प्रणाम दी।
    सादर।

    ReplyDelete
  2. सभी परिवार इसी तरह हों और सब जगह बाबू जी भी। सुन्दर।

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 11 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-१२-२०२०) को 'मौन के अँधेरे कोने' (चर्चा अंक- ३९१३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुंदर, दिल को छूने वाली रचना..।आपको मेरा सादर नमन..।

    ReplyDelete
  6. इस हृदयस्पर्शी लघुकथा के लिए साधुवाद विभा जी 🌹🙏🌹

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर लघुकथा ...
    प्रेरक भी !!!

    ReplyDelete
  8. कितने सुन्दर संस्कार और सदाचरण की शिक्षा दी है सन्तानों को -प्रणम्य हैं ऐसे पिता.

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर लघुकथा

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर, बाबूजी शायद ऐसे ही होते हैं

    ReplyDelete
  11. दर्शक हूटिंग करते तो कैसे
    पढ़ने वाले भी अवाक रह गए।
    जोरदार।

    नई रचना- समानता

    ReplyDelete
  12. प्रेरणादायक लघुकथा।

    ReplyDelete
  13. बहुत सुंदर लघुकथा

    ReplyDelete
  14. बहुत प्रेरक कथा. बाबूजी के दोस्तों को अंतिम पंक्ति में बिठाना; समाज आज भी उन्हें वह सम्मान नहीं देता. परन्तु बाबूजी का संस्कार उन बच्चों में ज़रूर दिखा.

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

शिकस्त की शिकस्तगी

“नभ की उदासी काले मेघ में झलकता है ताई जी! आपको मनु की सूरत देखकर उसके दर्द का पता नहीं चल रहा है?” “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, मैं माँ होकर अ...