Saturday 12 June 2021

तड़प

 आज मॉनसून की पहली बौछार से याद आया

मैं जिस शहर में हूँ

उसने बरगद को जड़ सहित उखाड़ फेका है।

पक्षियों को बसेरा देते-देते

नौ दल, चचान जुंडी, तेंदू , बड, पीपल, इमली, सिंदूर, माकड तेंदू, अमरबेल को शिरोधार्य करने वाला।

मनौती का धागा, चुनरी, घण्टी, ताला

अनेकानेक सहेजने वाला,

टहनियों में लटकाये भीड़ बया के नीड़ वाला।

नीड़ से ज्ञान लिया होगा रिश्तों के धागों ने उलझ जाना!

अक्षय वट के क्षरण के उत्तरदायित्व का

 स्पष्ट कारण का नहीं हो पाना।

मुक्तिप्रद तीर्थ गया में अंतिम पिंड का

प्रत्यक्षदर्शी गयावट ही है...!

6 comments:

  1. बदलते समय की वेदना को व्यक्त करती अप्रतिम रचना !!

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete
  3. यथार्थ को उकेरती सुंदर रचना...

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

छतरी का चलनी…

 हाइकु लिखने वालों के लिए ०४ दिसम्बर राष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में महत्त्वपूर्ण है तो १७ अप्रैल अन्तरराष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में यादगा...